Friday, 31 January 2014

शिक्षा की बदलती तस्वीर

आज दीनू अपने पिता के कारोबार में हाथ बटाता है महज 7 साल की उम्र के दीनू से जब पूछा गया कि वह किस क्लास में पढता है तो उसके चेहरे पर एक आश्चर्य भरा सवाल था कि ये क्लास क्या होता है जी हाँ दीनू जैसे अनेकों बच्चे है जिनके नसीब में न ही स्कूल है ना किताबें और ना ही सरकार की आकर्षक नीतियां। दीनू के पिता से पूछने पर पता चला ‘’कि प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की मेरी हैसियत नहीं और सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती  जब उनसे यह पूछा गया कि स्कूल में तो खाना भी मिलता है तो क्यो नहीं भेजते तो उनका जवाब था ‘’कि साब एक छोटा बेटा स्कूल जाता है और स्कूल के खाने से हर चौथे दिन बीमार हो जाता है’’ जब दिल्ली के खोड़ा गाँव स्थित शासकीय स्कूल में जाकर पड़ताल की तो मालूम पड़ा कि अभिभावक बच्चों को मिड-डे मील के लिए ही भेजते है और कुछ बच्चे पढ़ाई से सरोकार ना रखते हुए सिर्फ खाने के उद्धेश्य से ही स्कूल आते हैं प्रधानाचार्य राकेश गौतम ने जानकारी देते हुए कहा कि स्कूल मे शिक्षकों की संख्या सिर्फ 6 है जिसमे 2 महिला शिक्षिका और 4 पुरुष शिक्षक है विद्यालयय में एक ही शौचालय है जिसे शिक्षक और छात्रों के द्वारा प्रयोग में लाया जाता है स्कूल में 85 बच्चों के नाम दर्ज़ है और उपस्थिती की संख्या महज 22 बड़े ताज्जुव की बात है कि सरकार की सर्व शिक्षा अभियान की नीति पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे है और समय समय पर प्रस्तुत आंकड़े और रिपोर्ट इन नीतियों की सफलता का गुणगान करते नज़र आते हैं लेकिन इन आंकड़ों और रिपोर्टों की धज्जियां उड़ाती यह हकीकत सबके सामने होते हुए भी अदृश्य है या इसे नज़र अंदाज़ किया जाता है इसका तो भगवान ही मालिक है
क्या कहते है आंकड़े
·         भारत में सबसे ज्यादा अशिक्षित वर्ग है जिसकी संख्या लगभग 287 मिलियन है और यह कुल आबादी का 37 प्रतिशत है
·         इसका दो तिहाई हिस्सा ऐसी महिलाओं का है जो अनपढ़ है इसमें शहरी महिलाओं की अपेकषा ग्रामीण महिलाओं की संख्या अधिक है
·         यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार धनाभाव इसका बड़ा कारण है
·         देश के 16000 ज़िले के 3.3 लाख गाँव में किए गए सर्वे के अनुसार औसत पाँचवी कक्षा के औसत पाँच बच्चों में से दो बच्चे हिन्दी लिखने में समर्थ थे
·         भारत में प्राइमरी शिक्षकों की संख्या 30 लाख के करीब है जबकि 70-80 लाख शिक्षको की आवश्यकता है
सरकारी स्कूलों के पिछड़ने के कुछ प्रमुख कारण
·         ग्रामीण शिक्षकों में नवोन्मेषी विचारों का अभाव और ग्रामीण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कम से कम प्रयास करना
·         संसाधनों के अभाव के चलते शिक्षा में बाधा
·         अयोग्य शिक्षकों की भर्ती
·         शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु शिविरों का आयोजन ना किया जाना
·         बच्चों में शिक्षा के महत्व को प्रदर्शित करने में असक्षम

·         सरकार और अधिकारियों की अनदेखी के चलते स्कूलों में सिर्फ मध्याह्न भोजन और साइकिल, किताबों और गणवेश (यूनिफ़ोर्म) पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है और स्कूली पढ़ाई हाशिये पर चली जाती है

समस्या निवारण के कुछ उपाय
·         भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता
·         शिक्षकों की भर्ती हेतु पैमाने निर्धारित किए जाये
·         शिक्षकों की संख्या में वृद्धि
·         स्कूल का मतलब सिर्फ मध्याह्न भोजन केंद्र ना हो
·         शिक्षा का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार किया जाये
·         सरकारी स्कूलों मे प्राइवेट स्कूलों की भांति शिक्षा पद्धति को लागू किया जाये


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