हिंदू समाज बड़ा ही उत्सव प्रिय समाज है। इस
समाज में जितने पर्व और त्यौहार मनाएं जाते हैं, शायद ही दुनिया के किसी समाज में
मनाए जाते हों। माघ मेला ऐसा ही एक पर्व है, जिसका हिंदू समाज में बड़ा ही धार्मिक
महत्व है। इस पर्व की ख़ासियत है कि यह पूरे माघ महीने चलता है। यह हिन्दुओं की
धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का अद्भभुत सामंजस्य है।
प्रयागराज के संगम तट पर लगने वाले इस मेले में
देश-विदेश से आए लाखों लोग स्नान, ध्यान और पूजा-अर्चना करते हैं। हिंदू पंचांग के
अनुसार 14 से 15 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर 'माघ मेला' आयोजित होता है। इस मेले के दौरान संगम की रेतीली भूमि पर तंबुओं का एक शहर बस जाता है।
जिसकी खूबसूरती लोगों का मन मोह लेती है।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार माघ मास में
एक महीने तक कल्पवास करने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं। माघ मेला भारत के
सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में मनाया जाता है. नदी या फिर सागर में स्नान करना, इसका मुख्य उद्देश्य होता है. लेकिन, तीर्थराज
प्रयाग के मेले की तो बात ही अलग है। मान्यता तो यहां तक है कि जो इस मेले में शामिल
होते हैं उसका स्वागत स्वयम त्रीदेव करते हैं. अब भला उससे बड़ी बात और क्या हो
सकती है. प्रत्येक वर्ष माघ माह में जब सूर्य मकर राशि में होता है, तब सभी विचारों, मत-मतांतरों के साधु-संतों सहित सभी आमजन त्रिवेणी में स्नान करके पुण्य के
भागीदार बनते हैं. इस दौरान छह प्रमुख स्नान पर्व होते हैं. इसके तहत पौष पूर्णिमा,मकर
संक्रांती, मौनी अमावस्या , बसंत पंचमी पूर्णिमा और महाशिवरात्री के स्नान पर्व
प्रमुख हैं.यह मेला कितना प्राचीन है इसका अनुमान गोस्वामी तुलसी दास की कुछ
लाइनों से लगाया जा सकता है.
"माघ मकर गति रवि जब होई।
तीरथ पतिहिं आव सब कोई॥
देव दनुज किन्नर नर श्रेनी।
सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी॥
पूजहि माधव पद जल जाता।
परसि अखय वटु हरषहि गाता॥"
तीरथ पतिहिं आव सब कोई॥
देव दनुज किन्नर नर श्रेनी।
सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी॥
पूजहि माधव पद जल जाता।
परसि अखय वटु हरषहि गाता॥"
यह मेला कब से लगना शुरू हुआ इसका कोई एक सटीक
प्रमाण नही है, लेकिन कहा जाता है कि माघ में धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुर के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी. वहीं भृगु
ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि के द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ में संगम तट पर
स्नान करने से ही श्राप से मुक्ति मिली थी.पद्मपुराण के अनुसार माघ स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप
जलकर भस्म हो जाते हैं. ऐसे में माघ माह में स्नान सर्वश्रेष्ठ प्रायश्चित भी है.
माघ माह में जहां लोग ठंड से कांपते रहते हैं.वहीं
मेले में रहने वाले कल्पवासी प्रात:काल ही स्नान करके पूजा अर्चना करते हैं. संगम
के इस पावन तट पर साधू संतों का हुजूम लगा रहता है.सुबह से शाम तक माहौल भक्तीमय
रहता है.
कल्पवास कर रहे संत रामनाथ का कहना है कि यह
संसार का सबसे अनोखा मेला है। उन्होंने जब बताया कि मेले के खत्म होने तक परिसर
में ना तो मच्छर और ना मक्खियां दिखाई देती हैं.मेरे लिए इस बात पर भरोसा करना
थोड़ा मुश्किल हुआ, लेकिन जब मैंने पूरे दिन पदयात्रा की तो उनकी यह बात सच होती
दिखाई दी। संभव हो इसका कोई दूसरा कारण हो लेकिन उनके विश्वास में मुझे सच्चाई
दिखाई दी।
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