Monday 3 February 2014

राष्ट्रीय खेल की दुर्दशा...

रविवार और सोमवार को खेल के विषय मे बहुत कुछ पता चला कि हमारे देश मे लोग आज किस प्रकार हर तरह के खेल मे कितना ज्यादा रुचि लेते हैं। हर तरह के खेलों के से मैं रुबरु हुई पर खुशी से ज्यादा दुख इस बात का है कि तमाम खेलों के बीच हमारा राष्ट्रीय खेल कहीं विलुप्त हो रहा है। गाजियाबाद, नोएडा मे तमाम खेल के स्टेडियम हैं पर उन मे से किसी मे भी हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी के लिए जगह नही है । इस बात पर जितनी हैरानी होती है उससे ज्यादा दुख होता है कि हमारे राष्ट्रीय खेल की ऐसी दशा है, जिसके स्टेडियम तक नहीं हैं
ऐसा क्यों है कि किक्रेट में भारत जीतता या हारता है तो उससे भारत देश का सम्मान जुङा होता है और हॉकी जो कि राष्ट्रीय खेल है उसे लोग जानते तक नहीं ।लोगों को इस खेल की जानकारी तक नही है और हो भी क्यों?क्योंकि भारत के राष्ट्रीय खेल मे जब भारतीय ही कोई रुचि नहीं ले रहे हैं तो जानकारी का सवाल ही कहां उठता है। भारत का राष्ट्रीय खेल आज भी कहीं गुमनाम है। एशियन चैंपियनशिप जीतने के बाद भी इन खिलाङियों को कोई नही जानता है। भारत मे किक्रेट खिलाङियों के नाम भारत तक ही नहीं बल्कि विदेशों मे भी चर्चित रहते हैं। भारत मे केवल किक्रेट को ही अधिक महत्व दिया जाता है जिससे बाकी खेल अपना अस्तित्व के लिए संघर्ष तो कर रहें हैं न खेल मंत्रालय इस ओर ध्यान दे रहा है और ना ही देशवासी कोई सहयोग कर रहे हैं। भारत का राष्ट्रीय खेल होते हुए भी खेल का प्रसारण राष्ट्रीय चैनल पर नही होता है।
२०११ मे जब किक्रेट विश्वकप हुआ तो प्रधानमंत्री तक इसको देखने गये थे। और भारत के विश्वकप जीतने के बाद तो ऐसा लग रहा था कि जैसे पूरा देश दिवाली मना रहा हो । और इन सभी खिलाङियों के ऊपर जमकर धन वर्षा भी हुई। वहीं २०११ मे ही हॉकी इंडिया टीम को जीत हासिल हुई तो ऐसा कुछ नही हुआ।
हाकी टीम के कप्तान राज पाल सिंह का कहना है कि हमारी खिताबी जीत पर  हाकी इंडिया की राशि इतनी कम है कि हमारा दिन ही टूट जाता है। किक्रेट टीम के लिए भारतीय किक्रेट बोर्ड बहुत कुछ करता है इसके उलट हमारी फेडरेशन को हमारी कोई परवाही नही है। हमारी कामयाबी पर हर खिलाङी को बतौर इनाम २५,२५ हजार रुपये की रकम दी जाती है। जबकि हम इससे बेहतर के हकदार हैं यदि हाकी खिलाङीयों को ,ही इनाम नही दिया गया तो भविष्य में नौजवान हाकी को कैसे अपनाऐंगे ? यदि पुरस्कार ही नहीं होंगे तो नई पीणी हाकी खेलना ही नही चाहेगी । भारतीय खेल जगत में सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार मेजर ध्यानचंद्र पुरस्कार होता है जो कि हाकी खिलाङियों को सम्मानित करने के लिए प्रदान किया जाता है जबकि मेजर ध्यानचंद्र हाकी के ही खिलाङी थे । प्रत्येक वर्ष ज्यादा से ज्यादा ३ खिलाङियों को इस पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।जिस उपाधी पर ध्यानचंद्र हाकी को ले गे उस हाकी की प्रसिध्दी कहीं खो गई है। आजकल नाम के लिए हाकी राष्ट्रीय खेल रह गया है।

वहीं मार्केट पर भी किक्रेट का प्रभाव सबसे ज्यादा देखने को मिलता है। अगर हम विज्ञापन पर नजर डालें तो यहां से भी हाकी के खिलाङी गुम हैं । अपने देश की ऐसी दशा देख कर अफसोस होता है कि आखिर कब सरकार न देशवासी इस खेल को .स्वीकार करेंगे । एक सवाल हम सब के दिल मे होना चाहिए कि आखिर कब राष्ट्रीय खेल को राष्ट्रीय सम्मान मिलेगा।  

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