Wednesday 29 January 2014

आधी आबादी

वर्तमान समय में  पूरे ब्रह्मांड को खंगालने की ओर कदम बढ़ाए जा रहे हैं तो एक बार  जमीनी हालत की ओर ओर भी गंभीरता से  गौर किया जाना चाहिये। खाप पंचायतें समय – समय पर तालीबीनी फरमान जरी करने के लिये कुख्यात तो हो ही चुकी हैं. ऐसे समय में नया बयान , जिसमें लड़कियों के विवाह से पहले मोबाइल के प्रयोग पर पाबदी लगायी गयी है, का प्रकाश में आना हैरान तो नही. करता है लेकिन इस तरह की मानसिकता हमारे समाज को गर्त की ओर धकेले जा रही है। हर पाबंदी को लड़कियों के पाले में  से डाला ही जाता रहा है हमेशा से।

देर रात घर से बाहर न जाना, कपडों से गिफ्ट का तरह पैक रहना, शर्माना, नजरें झुकाये रखना, न जाने ऐसी कितनी पाबिंदयां हैं जो लड़कियों पर लगायी जाती रही हैं और सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इन सब फरमानो. को जारी करने में घर की महिलाओं की भी बराबर  भागीदारी रहती है। ये सोच को कुंद कर देना नहीं तो क्या है। यह तो खाप पंचायत का मामला था जो प्रकाश मे आ गया, परंतु  अधिकांश घरों की यही हकीकत है, तकनीक ने इंसानी जीवन को सरल बनाया है लेकिन अफसोस महिलाओ. के हिस्से यहां भी उपेक्षा ही आयी. मोबाइल  के कारण प्रताणना की कहानी सिर्फ रीना का नहीं है बल्कि असंख्य युवतियों की कहानी है।

एक स्त्री के साथ  भेदभाव की सोच सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही नहीं है बल्कि नगरों- महानगरों में भी है, मेरे एक मित्र के अनुसार महिलाओं को घर के पुरुष इसलिये नियंत्रण में रखते हैं ताकि उन्हें बाहर के पुरुषों से सुरक्षित रखा जा सके, जब मैंने उन से पूछा कि जब वही पुरुष बाहर जाकर दूसरी महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करता है उसका क्या.....तो ये था जवाब – वो जिम्मेदारी पीड़ित महिला के घर के पुरुषों की है,,और पुरुषो की फितरत पुरष जानते हैं इसलिये वो महिलाओं पर नियंत्रण रखते हैं।जब ये विचार एक युवा साथी के हैं , ऐसे में स्थिति और भी शोचनीय हो जाती है. ऐसी मानसिकता समाज की जड़ों में गहरी बैठी हुई है।

राहत की बात ये है कि अब लड़कियों ने अपनी कोशिशें तीव्र कर दी हैं। गावों और कस्बों से निकलकर लड़कियां नगरों एवं महानगरों का रुख कर रही है। महानगर जहां एक ओर जहा करियर के विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं तो दूसरी ओर सोचने समझने का मौका , आजादी और निजता का स्पेस भी देते है। घर से दूर रहना इनके लिये खुशी का सबब होता है।

हिंसक घटनाओं के बावजूद भी महिलाओं ने घर से बाहर निकलना बंद  नहीं किया।   स्त्री मुक्ति के लिए चली आ रही लड़ाई  इधर कुछ तीव्र हुई ह। ये हौसले ही महिलाओं को -नए मुकामों को हासिल करने में मदद कर रहे हैं।

No comments:

Post a Comment