Friday, 31 January 2014

पाश्चात्य संस्कृति भारतीय सभ्यता पर खतरा

पूरब और पश्चिम,दो विपरीत ध्रुव दो विपरीत दिशाऐँ अपनी अलग-अलग विशेषताओं के साथ आमने सामने नदी के किनारों की भाँति,कभी न मिलने वाली स्थिति में अवलम्बित है जिनका मतलब सृष्टि का अंत है
जो एक अनन्त कालीन सर्वविदित सत्य है ठीक उसी प्रकार सृष्टि के आरंभ से ही पूर्वी एवं पश्चिमी सभ्यताएँ एवं संस्कृतीयाँ अलग अलग परिवेश,जलवायु एवं वातावरण के अनुसार भिन्न रूप से पूष्पित एवं पल्लवित हुई है एवं उपनिवेशिकरण काल के पूर्व तक एक-दूसरे से पूणतया अनजान परिलक्षित होती है। परन्तु उसके पश्चात के वर्षो तथा इस वैश्वीकरण के युग में सम्पूर्ण विश्व का जैसे पाश्चात्यीकरण होने लगा है हम आज अपनी उपनिवेशिक मानसिकता के कारण अपनी संस्कृति को सर्वश्रेष्ठ स्वीकार कर उसका अन्धाधुन्ध अनुकरण कर रहे है।परन्तु यही पर हमें अति सूक्ष्म विचारण की आवश्यकता है
हम स्वर्धा यह भूल चूके है कि प्रकृति ने हर परिवेश को अलग अलग परिस्थितियाँ जलवायु एवं साधन प्रदान किए है। जिसके अनुरूप ही हमारी संस्कृति तथा अन्य संस्कृतियाँ अनुकूलित एवं परिष्कृत हुई है।
पश्चिम की सभ्यता एवं संस्कृति उस वातावरण एवं जलवायु में पैदा हुई है तथा उसको उसी सन्दर्भ में मादक पदार्थो का सेवन,देर रात तक संचालित जीवन तथा अन्य,कई बातें एसी है जो उस ठण्डी जलवायु एवं वर्फ से ढके हुए भाग के लिए उपयुक्त है किन्तु उसके दुष्प्रभाव भी स्पष्ट परिलक्षित हो रहे है। क्यूँकि हमारा वातावरण उससे सर्वधा भिन्न एवं अनेक जलवायु विभिन्नतओं से युक्त है।
मैं उपयुक्त एवं समुचित पथप्रदशर्न करने वाली विशिष्टातओं को स्वीकारने का विरेध नही करती अपितु केवल पथश्रष्ट एवं रोगी करने वाली पाश्चाय जीवन –शैली एवं उसके अनुपयुक्त अविवेकशील अन्धानुकरण का विरोध करती हूँ जैसा की स्वामी विवेकानन्द जी ने भी कहा था कि पूर्वी एवं  पश्चिमी सभ्यता की अपनी विशेषताओं का लेन -दन करके प्रगती का मार्ग प्रशस्त  करना होगा न कि अन्धानुकरण से किसी भी संस्कृति के अस्तित्व को दाव पर लगाना चाहिए,क्यूँकि दोनो में वही विशेषताएँ विधमान हैं।
किन्तु हमे तो अपनी अस्मिता और अस्तित्व पूरी तरह पाश्चात शैली को अपना कर खो देने पर तुले है। मेरा सवाल है कि अगर हम पूरी तरह अनेक  रंग मे रंग जाएंगे तो हमारा  स्व अस्तित्व  कँहा शेष रहेगी वरना वो दिन दूर नही जब हम आर्य संस्कृति भूल अपनी जड खो देंगे ।
इसलिए सोचिए कितने वर्षो उद्भव,विकास एंव प्रयास का प्रमाण एवं निष्कर्ष है।
हमारी संस्कृति जो हम यूं ही खोते जा रहे है किसी कवि ने इसी बात को अपने कविता  के माध्यम से इंगित करते हुए कहा है
सदियों की कुर्बानी यूँ ही बेमोल बिकी
जम्हाई लेने में ही हो गया सवेरा यदि
इतिहास न तुमको माफ करेगा याद रहे
पीढीयाँ तुम्हारी किसी बात पर पछताएंगी
पूरब की लाली मे कालिख पुत जाएगी


Caricature



निर्माण के बीच फंसा रंगमंच और पुस्तकालय

निर्माण के बीच फंसा रंगमंच और पुस्तकालय
जब 2 साल पहले के अतीत में विचरण करता हूं, तो आंखों के आगे एनएसडी परिसर का पुस्तकालय और सर्कल का हरा-भरा पार्क थिरकने लगता है. निर्माण ने पुस्तकालय और पार्क दोनों को लील लिया. कलाकारों से उनका पसंदीदा रिहर्सल स्पेस और पुस्तक प्रेमियों से उनकी लाइब्रेरी छीन गई और निर्माण है कि पूरा होने का नाम नहीं ले रहा! इसकी वजह से मंडी हाउस की रंगत फीकी हो गई है.
भारत रंग महोत्सव में नज़र निर्माण से ढ़के पार्क की तरफ ही टिकी रही. इस पार्क में दो साल पहले हम नाटकों की रिहर्सल करते थे, लोग बैठते थे और बच्चे मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग लेते थे. नाटकों के लिए स्पेस की कमी को पूरा करता था, मंडी हाउस का यह पार्क, जो लोग नाटक की रिहर्सल के लिए किराए पर स्पेस नहीं ले पाते थे, उनका सदाबहार अड्डा था, यह पार्क. लेकिन, निर्माण की वजह से अब इसकी हरियाली सूख सी गई है

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इसी तरह, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (रानावि) परिसर के अंदर बना पुस्तकालय पुस्तक प्रेमियों की पसंदीदा जगह थी. इस पुस्तकालय की बदौलत हम जैसे युवाओं में पुस्तकों के प्रति प्रेम जागृत हुआ. नाटकों को पढ़ने, उपन्यास खोजने, जर्नलिज्म की किताबों की फोटोकॉपी कराना, सब यहीं तो किया था हमने. पहली बार पुस्तकों से सही तौर पर परिचय इसी पुस्तकालय की गोद में सीखा, लेकिन अब यह पुस्तकालय यहां नहीं है. मेट्रो के लिए हो रहे निर्माण ने इसे यहां से शिफ्ट करवा दिया. फूड हब में बैठी आखें, इस पुस्तकालय की तलाश कर रही थी.
एनएसडी परिसर की सजावट इस बार पिछले सालों के मुकाबले फीकी सी है. थोड़ी निरसता सी महसूस हुई. खैर, गाथा ग्रुप के कलाकारों से मिलकर प्रसन्नता ज़रूर हुई. दिल्ली में इस ग्रुप को भारतेंदु नाट्य अकादमी से स्नाकोत्तर रंगकर्मी भूपेश जोशी चलाते हैं. कलाकार दोस्तों ने समकालीन रंगमंच और उसके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में अपनी-अपनी बात कही.
प्रेक्षालयों का बढ़ता किराया, रिहर्सल स्पेस की मुफ्त उपलब्ध न होना, किसी भी प्रकार का अनुदान न मिलना. नाट्य रुचि का एक ख़ास वर्ग तक सिमटना. आम दर्शकों की नाटक के प्रति रुचि विकसित न होना और इन सबके बाद नए नाटक लेखकों का अभाव. नए निर्देशकों को मौका न मिलना, फेस्टीवल में नाटक लगाने के लिए तिगड़म भिड़ाने वालों की तादाद का बढ़ना. सबकी अपनी-अपनी शिकायते थी.

कई ऐसे निर्देशकों के बारे में बताया, जिनका रंगमंच में अच्छा ख़ासा नाम है, लेकिन कलाकार को पैसा देने में ढुलमुल रवैया. फिर भी रंगमंच के प्रति प्रतिबद्धता और युवा कलाकारों के जुनून ने दिल में खुशी भर दी. वहीं, विजय तेंदुलकर के प्रयोगात्मक नाटक 'अंजी' ने काफी प्रभावित किया. बिना ताम-झाम और भारी-भरकम सेट के भी नाटक केवल कहानी के दम पर दर्शकों को कैसे बांध सकता है, यह इस नाटक को देखकर महसूस हुआ.
स्टेज पर रखे एक दरवाज़े को सूत्रधार सहजता से अलग-अलग घरों के दरवाजे में तब्दील कर रहा है. और उसी नाम का पात्र बन जा रहा है. ट्रेन में बैठी नाटक की मुख्य पात्र अंजी दीदी के सामने वह कभी भिखारी तो कभी किन्नर की भूमिका में आता है और फिर चुपचाप तबले वाले के बगल में बैठ जाता है. उसकी उपस्थिति स्टेज पर काफी प्रभावपूर्ण है.
वह नाटक की कहानी आगे बढ़ाने के लिए अंजी दीदी से बातचीत करता है और बड़ी बेबाकी से एक छिछोरे पात्र प्रभुदयाल से नाटक किसका है, भी पूछ लेता है. वह प्रभुदयाल को स्टेज से खदेड़ देता है. प्रभुदयाल अंजी के ऑफिस में काम करता है, और उससे छेड़छाड़ का कोई बहाना नहीं छोड़ता. प्रभुदयाल की इस बात पर दर्शक काफी खुश होते हैं, जब वह कहता है-नाटक दर्शकों का है, नाटक क्रिटिक का है.
नाटक के ख़त्म होने के बाद एक मित्र ने दिवंगत लेखक शैलेश मटियानी के ऊपर पिछले दिनों पर्वतीय कला केंद्र की प्रस्तुति की खूब आलोचना की. उसकी शिकायत नाटक की म्यूजिकल प्रस्तुति और यथार्थ से कटे होने के लिए थी. खैर, यहां नाटकों को देखना का सिलसिला पहले से काफी कम हो गया है. इस बात का दुःख सता भी रहा है.

मीट विथ सेलेब

मीट विथ सेलेब 
शुभ कौर गुमान के  साथ सुमित मालवेकर 

चलो मन गंगा यमुना तीर

हिंदू समाज बड़ा ही उत्सव प्रिय समाज है। इस समाज में जितने पर्व और त्यौहार मनाएं जाते हैं, शायद ही दुनिया के किसी समाज में मनाए जाते हों। माघ मेला ऐसा ही एक पर्व है, जिसका हिंदू समाज में बड़ा ही धार्मिक महत्व है। इस पर्व की ख़ासियत है कि यह पूरे माघ महीने चलता है। यह हिन्दुओं की धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का अद्भभुत सामंजस्य है।

प्रयागराज के संगम तट पर लगने वाले इस मेले में देश-विदेश से आए लाखों लोग स्नान, ध्यान और पूजा-अर्चना करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार 14 से 15 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर 'माघ मेला' आयोजित होता है। इस मेले के दौरान संगम की रेतीली भूमि पर तंबुओं का एक शहर बस जाता है। जिसकी खूबसूरती लोगों का मन मोह लेती है।

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार माघ मास में एक महीने तक कल्पवास करने से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं। माघ मेला भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में मनाया जाता है. नदी या फिर सागर में स्नान करना, इसका मुख्य उद्देश्य होता है. लेकिन, तीर्थराज प्रयाग के मेले की तो बात ही अलग है। मान्यता तो यहां तक है कि जो इस मेले में शामिल होते हैं उसका स्वागत स्वयम त्रीदेव करते हैं. अब भला उससे बड़ी बात और क्या हो सकती है. प्रत्येक वर्ष माघ माह में जब सूर्य मकर राशि में होता है, तब सभी विचारों, मत-मतांतरों के साधु-संतों सहित सभी आमजन त्रिवेणी में स्नान करके पुण्य के भागीदार बनते हैं. इस दौरान छह प्रमुख स्नान पर्व होते हैं. इसके तहत पौष पूर्णिमा,मकर संक्रांतीमौनी अमावस्या बसंत पंचमी पूर्णिमा और महाशिवरात्री के स्नान पर्व प्रमुख हैं.यह मेला कितना प्राचीन है इसका अनुमान गोस्वामी तुलसी दास की कुछ लाइनों से लगाया जा सकता है.

"माघ मकर गति रवि जब होई।
तीरथ पतिहिं आव सब कोई॥
देव दनुज किन्नर नर श्रेनी।
सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी॥
पूजहि माधव पद जल जाता।
परसि अखय वटु हरषहि गाता॥"


यह मेला कब से लगना शुरू हुआ इसका कोई एक सटीक प्रमाण नही है, लेकिन कहा जाता है कि माघ में धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुर  के नरेश पुरुरवा  को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी. वहीं भृगु ऋषि  के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और  गौतम ऋषि के द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ में संगम तट पर स्नान करने से ही श्राप से मुक्ति मिली थी.पद्मपुराण के अनुसार  माघ स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं. ऐसे में माघ माह  में स्नान सर्वश्रेष्ठ प्रायश्चित भी है.

माघ माह में जहां लोग ठंड से कांपते रहते हैं.वहीं मेले में रहने वाले कल्पवासी प्रात:काल ही स्नान करके पूजा अर्चना करते हैं. संगम के इस पावन तट पर साधू संतों का हुजूम लगा रहता है.सुबह से शाम तक माहौल भक्तीमय रहता है.

कल्पवास कर रहे संत रामनाथ का कहना है कि यह संसार का सबसे अनोखा मेला है। उन्होंने जब बताया कि मेले के खत्म होने तक परिसर में ना तो मच्छर और ना मक्खियां दिखाई देती हैं.मेरे लिए इस बात पर भरोसा करना थोड़ा मुश्किल हुआ, लेकिन जब मैंने पूरे दिन पदयात्रा की तो उनकी यह बात सच होती दिखाई दी। संभव हो इसका कोई दूसरा कारण हो लेकिन उनके विश्वास में मुझे सच्चाई दिखाई दी।

ठंड मे महिलाएं पियें अधिक पानी, दूर करें परेशानी

ठंड मे महिलाएं पियें अधिक पानी, दूर करें परेशानी 

अक्सर भाग दौड भरी जिंदगी में महिलाएं इतनी व्यस्त हो जाती है कि वे आवश्यक चीजें जैसे पानी पीना तक भूल जाती है. अगर आप भी ऐसी महिलाओं में से एक है तो आप जाने अनजाने में कई सारी बीमारियों को न्यौता दे रही हैं अक्सर सर्दियों में प्यास कम लगने के कारण कम पानी पीना पेट में जल,संक्रमण या बीमारियों का कारण बन सकता है। चिकित्सकों का कहना है कि यह समस्या महिलाओं में विशेष तौर पर हो सकती है। अत्याधुनिक सुविधाओं और भाग दौङ भरी जिंदगी में ऐसा होना आम बात है, जिससे विभिन्न प्रकार की बीमारियां महिलाओं में ब रहीं हैं।

स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर कृष्णा ने बताया कि “पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक बीमारियों का खतरा होता है ऐसे में कम पानी पीने से मूत्राशय संबंधी बीमारियां होने का खतरा अधिक रहता है। वैसे तो इन बीमारियों के लक्षण हर आयु वर्ग की महिलाओं मे हो सकते हैं लेकिन युवतियों और रजोनिव्रत्ति के निकट पहुँच चुकी महिलाओं में यह समस्या होने का खतरा अधिक होता है।“ हर साल 15 प्रतिशत महिलाएं मूत्राशय संबंधी समस्या से ग्रसित हो रहीं हैं । और कम से कम 7.5 प्रतिशत महिलाओं के जीवन में यह समस्या एक बार जरुर होती है। पुरुषों की तुलना में कम पानी पीने से महिलाओं को मूत्राशय संबंधी बीमारी का जोखिम आठ गुना आधिक होता है ।
 डॉक्टरों के अनुसार नव-युवतियों में कम पानी पीने की समस्या बढ़ रही है जिससे विभिन्न प्रकार की बीमारियां उम्र से पहले उन्हें अपनी चपेट में ले लेतीं हैं महिलाओं को सार्वजनिक शौंचालय के अधिक प्रयोग से बचना चाहिए इससे संक्रमण का खतरा अधिक बढ़ जाता है। चिकित्सकों के अनुसार प्रतिदिन कम से कम 12 ग्लास पानी पीने की सलाह दी जाती हैं, ताकि महिलाओ में संक्रमण आदि को लगातार शरीर से बाहर निकाला जा सके । महिलाओं के शरीर में पानी की कमी होने से पेशा करते समय जलन होना,कम पेशाब आना और कमर के निचले हिस्से में दर्द तथा बुखार आदि की समस्या हो सकती है। महिलाओं को हर तीन से छह महीने में एक बार अपने शरीर की माइक्रोस्कोपिक जांच कराने की सलाह चिकित्सक देते हैं ।
इन समस्याओं से बचने के लिए करौंदे का जूस पीना सबसे लाभदायक होता हैं. अगर महिलाऐं स्वच्छता पर अधिक ध्यान दें तो इससे बचा जा सकता है।      

विंटर में कैसे रखें अपनी त्वचा का ध्यान

विंटर में कैसे रखें अपनी त्वचा का ध्यान

मेकअप के लिए कई सारे विकल्प विंटर में अपनाए जा सकते है। डार्क कलर की लिप्सटिक से लेकर गहरे आईशैडो तक को इस मौसम मैं बेझिझक इस्तेमाल किया जा सकता है।आइए जानते हैं सौंदर्य विशेषज्ञ सुरेश तोमर से विंटर ब्यूटी के टिप्स.

·        सबसे पहले मेकअप के बेस के लिए एक अच्छी फेस क्रीम का उपयोग अवश्य करें। यह विंटर में आपके मेकअप को लम्बे समय तक टिकने मे मदद करेगी।
·        ऐसी क्रीम के प्रयोग से बचें जो नमी छोङने लगती है,वरना आपका मेकअप खराब हो सकता है
·        अगर आप मॉइश्चराइजर का प्रयोग कर रहीं हैं तो ऐसा प्रोडक्ट चुनें,जो लाइट कंसिस्टेंसी का हो ताकि आपकी त्वचा उसे पूरी तरह सोख सके
·        अगर आप किसी पार्टी में जा रही हैं तो कोशिश करें कि फाउंडेशन का इस्तेमाल कम करें अगर आवश्यक हो तो पहले मॉश्चराइजर लगाएं जिससे आपके मेकअप में पैचेस नजर नहीं आएंगे।
·        ऑयल फ्री क्रीम के इस्तेमाल से बचें जिससे त्वचा को रुखी होने से बचाव किया जा सकता है।
·        बालों को लगातार साफ करते रहें जिससे रुसियों के झङने से आपकी त्वचा में पिंपल की परेशानी कम हो जाएगी।
·        रात मे सोने से पहले अपने चेहरे को क्लिंजिंग मिल्क से अच्छी तरह साफ करके नाइट क्रीम का प्रयोग करें जिससे अपकी त्वचा मुलायम रहेगी।
·        सुबह उठकर हल्के गुनगुने पानी से अपने चेहरे को साफ करके लोशन का उपयोग करें।
·        सर्दियों में बाहर जाने से पहले अपने चेहरे पर संस्क्रीम का उपयोग करके निकलें जिससे आपके चेहरे की चमक बरकरार रहेगी।

·        अगर आप पार्टी में जा रहीं हैं तो चेहरे पर फाउंडेशन का सीधा इस्तेमाल करने से बचें अगर आवश्यकता हो तो मॉश्चराइजर के साथ मिलाकर लगाएं।

शिक्षा की बदलती तस्वीर

आज दीनू अपने पिता के कारोबार में हाथ बटाता है महज 7 साल की उम्र के दीनू से जब पूछा गया कि वह किस क्लास में पढता है तो उसके चेहरे पर एक आश्चर्य भरा सवाल था कि ये क्लास क्या होता है जी हाँ दीनू जैसे अनेकों बच्चे है जिनके नसीब में न ही स्कूल है ना किताबें और ना ही सरकार की आकर्षक नीतियां। दीनू के पिता से पूछने पर पता चला ‘’कि प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की मेरी हैसियत नहीं और सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती  जब उनसे यह पूछा गया कि स्कूल में तो खाना भी मिलता है तो क्यो नहीं भेजते तो उनका जवाब था ‘’कि साब एक छोटा बेटा स्कूल जाता है और स्कूल के खाने से हर चौथे दिन बीमार हो जाता है’’ जब दिल्ली के खोड़ा गाँव स्थित शासकीय स्कूल में जाकर पड़ताल की तो मालूम पड़ा कि अभिभावक बच्चों को मिड-डे मील के लिए ही भेजते है और कुछ बच्चे पढ़ाई से सरोकार ना रखते हुए सिर्फ खाने के उद्धेश्य से ही स्कूल आते हैं प्रधानाचार्य राकेश गौतम ने जानकारी देते हुए कहा कि स्कूल मे शिक्षकों की संख्या सिर्फ 6 है जिसमे 2 महिला शिक्षिका और 4 पुरुष शिक्षक है विद्यालयय में एक ही शौचालय है जिसे शिक्षक और छात्रों के द्वारा प्रयोग में लाया जाता है स्कूल में 85 बच्चों के नाम दर्ज़ है और उपस्थिती की संख्या महज 22 बड़े ताज्जुव की बात है कि सरकार की सर्व शिक्षा अभियान की नीति पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे है और समय समय पर प्रस्तुत आंकड़े और रिपोर्ट इन नीतियों की सफलता का गुणगान करते नज़र आते हैं लेकिन इन आंकड़ों और रिपोर्टों की धज्जियां उड़ाती यह हकीकत सबके सामने होते हुए भी अदृश्य है या इसे नज़र अंदाज़ किया जाता है इसका तो भगवान ही मालिक है
क्या कहते है आंकड़े
·         भारत में सबसे ज्यादा अशिक्षित वर्ग है जिसकी संख्या लगभग 287 मिलियन है और यह कुल आबादी का 37 प्रतिशत है
·         इसका दो तिहाई हिस्सा ऐसी महिलाओं का है जो अनपढ़ है इसमें शहरी महिलाओं की अपेकषा ग्रामीण महिलाओं की संख्या अधिक है
·         यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार धनाभाव इसका बड़ा कारण है
·         देश के 16000 ज़िले के 3.3 लाख गाँव में किए गए सर्वे के अनुसार औसत पाँचवी कक्षा के औसत पाँच बच्चों में से दो बच्चे हिन्दी लिखने में समर्थ थे
·         भारत में प्राइमरी शिक्षकों की संख्या 30 लाख के करीब है जबकि 70-80 लाख शिक्षको की आवश्यकता है
सरकारी स्कूलों के पिछड़ने के कुछ प्रमुख कारण
·         ग्रामीण शिक्षकों में नवोन्मेषी विचारों का अभाव और ग्रामीण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कम से कम प्रयास करना
·         संसाधनों के अभाव के चलते शिक्षा में बाधा
·         अयोग्य शिक्षकों की भर्ती
·         शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु शिविरों का आयोजन ना किया जाना
·         बच्चों में शिक्षा के महत्व को प्रदर्शित करने में असक्षम

·         सरकार और अधिकारियों की अनदेखी के चलते स्कूलों में सिर्फ मध्याह्न भोजन और साइकिल, किताबों और गणवेश (यूनिफ़ोर्म) पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है और स्कूली पढ़ाई हाशिये पर चली जाती है

समस्या निवारण के कुछ उपाय
·         भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता
·         शिक्षकों की भर्ती हेतु पैमाने निर्धारित किए जाये
·         शिक्षकों की संख्या में वृद्धि
·         स्कूल का मतलब सिर्फ मध्याह्न भोजन केंद्र ना हो
·         शिक्षा का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार किया जाये
·         सरकारी स्कूलों मे प्राइवेट स्कूलों की भांति शिक्षा पद्धति को लागू किया जाये


Thursday, 30 January 2014

UNIVERSITY REMEMBERS GANDHI AND MAKHANLAL CHATURVEDI ON THEIR DEATH ANNIVERSARIES.

The death anniversaries of the two great men of the nation -Mahatma Gandhi and the Makhan Lal Chaturvedi were observed on Thursday at Makhanlal Chaturvedi University, (Noida campus) with all the professors and the students of this campus leading the university in paying homage to these great freedom fighters.

The programme started with a floral tribute offered to the photographs of the duo by Mr.Jagdish Upasane (Our Director). Then there was a discussion on their work towards the society. Many students shared their views on the subject. Latika Joshi, a student of MAMC 2nd semester narrated a story relevant to the sayings of Gandhi .Pradeep Pandey of MSC EM 2nd semester sang raghu pati raghav raja ram .Each students joined  in when Snigdha mam sang  the melodious - vaishnav jan to tene kahiye. There was another pupil who narrated the famous poem of the Makhanlal . Each proffers shared their thoughts relating to the two personalities .The director of the campus said that the new generation lacks the knowledge about these nation lovers. “These program me should be held on regular basis as these increase one’s self confident” asserted – Ankit Pandey one of the speaker of the event .The whole function was of 1 hour and 30 minutes, attended by all the students.

Navdeep Nandre



तनुजा को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया

2014 फिल्म फेयर अवार्ड अमिताभ व्दारा पुरस्कृत की गइ तनुजा मुखर्जी
59 फिल्म फेयर अवार्ड का आयोजन 16 जनवरी 2014 को मुंमई में किया गया जिसमें फिल्म जगत की बड़ी-बड़ी हस्तियां मौजूद रही। फिल्म फेयर अवार्ड की शुरूआत 21 मार्च 1954 से हो चुकी है। इस अवार्ड में सिनेमा जगत के कलाकारों को अलग-अलग श्रेणी में अवार्ड देने के अलावा,कलाकारों को लाइफ टाईम अचीवमेंट से भी नवाजा जाता है। ये अवार्ड फिल्म जगत से लंबे समय तक जुड़े हुए कलाकारों को दिया जाता है, जो फिल्म इंडस्ट्री में विशेष योगदान दे चुकें है.

इस वर्ष यह  पुरस्कार फिल्म जगत की जानी पहचानी हस्ती "तनुजा मुखर्जी" को दिया गया. उन्हें अमिताभ बच्चन ने इस अवार्ड से नवाजा। अमिताभ बच्चन ने पत्रकारों से बात चीत में बताया कि तनुजा को सम्मानित करते वक्त वे बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहे थें। इससे पहले अभिनय के जादुगर कहे जाने वाले रेखा,दिलीप कुमार,देवानन्द जैसे बड़े कलाकारों को भी इस पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुकां है, जो लंबे समय तक फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े रहें और कई दशक फिल्म जगत को दिए

तनुजा ये सम्मान पाकर बेहद खुश है और ये खुशी उनके चेहरे पर साफ दिख रही थी. अचीवमेंच अवार्ड के दौरान उनकी दोनों बेटी काजोल और तनिषा भी उनके साथ मैोजूद थी। बेटियों ने कहा कि अचीवमेंट अवार्ड सम्मान पर गर्व है उनहोंने इसके लिए फिल्म जगत का धन्यवाद किया।  तनुजा की बडी बेटी काजोल बॅालिवुड़ को कई सुपर हिट फिल्में दे चुकी है और फिल्म जगत में उनकी अगल पहंचान है। हुए अपनी अच्छी पेहचान बनायी वही दूसरी ओतनिषा ने केवल तीन फिल्मो मे काम किया है और काजोल जिस प्रकार से फिल्म जगत मे प्रसिध्दि प्राप्त करने में कामयाब रही ठीक उसके विपरीत तनिषा कामयाब होने में असफल रही है।तनुजा भी अपने समय की एक सफल अभिनेत्री रहे चुकी है।

तनुजा ने फिल्मो मे अपने करिअर की शुरुआत सन् 1952 मे अंबर फिल्म से किया था. इसके बाद उन्होनें चाँद और सूरज,दादी माँ,प्रेम रोग,मासूम,यादगार,बेटी,जीने की राह,हाथी मेरे साथी,एक पहली और मेरे जीवन साथी,तुम जियो हजार साल,साथिया,भूत,खाकी,दीवार जैसे अनेक सुपर हिट फिल्में दी.जिसमे इनके अभिनय को आज भी सराहा जाता है और तब से लेकर आज तक उन्होने अपना पुरा योगदान इस फिल्म जगत को दिया है जिसे कभी भुला नही जा सकता।

सितारों से आगे...दीपिका

सितारों से आगे...दीपिका पादुकोण
कभी ये राम की लीला बनी,तो कभी इनकी जवानी दिवानी हुई और कभी ये रेस में चैन्नै एक्सप्रेस की तरह तेज दौड़ी.हम बात कर रहे हैं 2013 की सबसे सफल अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की.बॉलीवुड में 2013 दीपिका का साल रहा.ये साल दीपिका के लिए एक खास अनुभव ले कर आया.इस साल दीपिका की आई चारों फिल्में रेस-2,ये जवानी है दीवानी,चैन्नै एक्सप्रेस और रामलीला ने ना सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाया बल्कि सौ करोड़ के क्लब में भी अपनी जगह बनाने में सफल रहीं.इन चारों फिल्म में दीपिका का किरदार एक दूसरे से बिलकुल अलग था.जहां रेस-2 में एक मॉडन और चालाक लड़की का किरदार निभाया,वहीं ये जवानी है दिवानी में सीधी-साधी,पढ़ाकू लड़की बनी.चैन्ने एक्सप्रेस में तो दीपिका की कॉमेडी के आगे किंग खान की चमक भी फीकी पड़ गई और रामलीला में एक बेबाक और निडर लड़की की भूमिका को बेखूबी से निभाया.
28 वर्षीय दीपिका 2014 में भी अपना ये जलवा जारी रखने के लिए बेकरार हैं.फराह खान द्वारा निर्देशित हैप्पी न्यू ईयर से दीपिका ओम शांति ओम की सफलता को भुनना चाहेंगी.इसमें उनके हीरो किंग खान होंगे.ये फिल्म अक्टूबर 2014 को सिनेमाघरों में दस्तक देगी.इसके अलावा दीपिका होमी अदजानिया की फिल्म फाइंडिंग फैनी फर्नांडिस कर रही हैं.इसमें दीपिका ने एक डांसर की भूमिका निभाई है.इस फिल्म में दीपिका का साथ अर्जुन कपूर देंगे.ये फिल्म 4 जुलाई 2014 को प्रदर्शित होगी.इतना ही नहीं,दीपिका सिर्फ हिंदी फिल्मों में अपना जलवा दिखाने को बेकरार नहीं बल्कि तेलगु फिल्मों में भी धूम मचाने की तैयारी कर रहीं हैं.दीपिका तेलगु की 3-डी एनीमेटेड फिल्म विक्रमा सिम्हा में काम कर रहीं जिसमें इनके हीरो रजनीकांत हैं.ये फिल्म 14 अप्रैल 2014 को दर्शकों से रू-ब-रू होगी.इसके साथ ही दीपिका तमिल की फिल्म कोच्चाडाईयान कर रही हैं.अब देखना ये है कि क्या 2014 में दीपिका 2013 वाली ही सफलता दोहरा पाती हैं या नहीं.क्या 2014 में भी राम की लीला नगाड़े संग खुशी के ढोल बजा पाऐगी?
कुछ अनजानी बातें-
·         दीपिका का जन्म 7 जनवरी 1986 को डेनमार्क में हुआ था.जब वो 11 साल की थी तब उनका परिवार बेंगालौर आ कर बस गया.
·         दीपिका की पहली फिल्म 2006 में आई ओम शांति ओम नहीं बल्कि उसी साल आई कन्नड़ फिल्म ऐश्वर्या थी.
·         दीपिका के पास मुंबई के पॉश इलाके,प्रभादेवी में 16 करोड़ का बंगला है जो उनके पूर्व ब्वॉयफेंड सिद्धार्थ माल्या ने दिया था.
·         सूत्रों की मानें तो दीपिका सूरज बड़जात्या की अगली फिल्म बड़े भईया में काम कर रहीं हैं जिनमें उनके हीरो सलमान होंगे.
·         रामलीला के लिए संजय लीला भंसाली की पहली पसंद दीपिका नहीं बल्कि करीना कपूर खान थी.लेकिन जब मिसेज खान ने ये फिल्म करने से मना कर दिया तो ये फिल्म दीपिका की झोली में आ गिरी.


जागृति प्रिया